क्या दौर आया है…
क्या दौर आया है, ज़माना हैरान सा लगता है,
हर शख़्स अब कुछ परेशान सा लगता है।
जिसने ताक़तवरों को भी मजबूर कर डाला,
जिसने अमीरों को भी बेबस बना डाला।
अब इंसान जीने को मजबूरी ओढ़ चुका है,
मतलब के साए में मजबूरियाँ बो चुका है।
हर चेहरा अब खुद में उलझा हुआ है,
हर रिश्ता जैसे थोड़ा सा बिछड़ा हुआ है।
क्या दौर आया है, दूरी अपनों से करवा दी,
मदद के हाथों को भी थामने से हटा दी।
अब छोटी उम्मीदों में सुकून ढूँढा जाता है,
हर सुबह बस एक आस पे जिया जाता है।
क्या दौर आया है, जिसने ये सिखा दिया,
छोटी-छोटी खुशियों में भी जीना सजा दिया।
जिसने एहसास अपनों का फिर से दिलाया,
हर रिश्ते का मतलब फिर से समझाया।
क्या दौर आया है…
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